अतीत की घटनाओ का वर्णन इतिहास कहलाता है. इतिहास शब्द (इति+ह+आस) अस धातु लिट लकार अन्य पुरुष तथा एक वचन से बना है. तात्पर्य है "यह निश्चित था".. ग्रीस के लोग इतिहास के लिए History शब्द का प्रयोग करते है. हिस्ट्री का शाब्दिक अर्थ है बुनना. अनुमान होता है कि ज्ञात घटनाओ को व्यस्थित ढंग से बुनकर येसा चित्र उपस्थित करना जो सार्थक और सुसंबद्ध हो.
इतिहास का अध्यन न सिर्फ वर्तमान को ठीक करने में वरन अतीत में हुई गलतियों को सुधारने में किया जाता है( अंकुर आनंद मिश्र) . इतिहास हमें सिखाता है कि हम अपने गौरवशाली पूर्वजो द्वारा किये गए महान कार्यो से कुछ सीखे और उनकी भूलो से बचे. इतिहास का अध्यन वर्तमान में अच्छे जीवन का प्रेरणा श्रोत एवं पथ प्रदर्शक होता है. महापुरुषो के जीवन से ही देश के होनहार नवयुवको को नव उत्साह एवं नव स्फूर्ति होती है. अपने महापुरुषों के जीवन का अनुशीलन किसी भी जाति को अपने आदर्श स्थापित करने के लिए आवश्यक है. मनुष्य को अपने पूर्वजो द्वारा अतीत में किए गए गौरवशाली कार्यो पर गर्व करना चाहिए नहीं तो वह भी आगे चलकर ऐसा कोई कार्य नहीं कर सकेगा जिस पर उसकी आने वाली पीढी गर्व करे. अतीत की गहराइयो में कई राज छुपे होते है जो वर्तमान को जानने में सहयोगी होते हैं। महाभारत में वर्णन है कि पूरे यत्न से इतिहास की रक्षा करनी चाहिए। इतिहास और प्राचीन गौरव नष्ट कर देने से विनाश निश्चित है।
यदुवंश का इतिहास जानने के लिए सृष्टि रचना, मनुष्य की उत्पत्ति, सामाजिक संरचना, राजवंशों का उद्भव आदि से अवगत होना आवश्यक है. सृष्टि उत्पत्ति के बारे में मूलतः दो मान्यताएं है, पहला धार्मिक (पौराणिक) और दूसरा वैज्ञानिक. यहाँ धार्मिक मान्यतायों के आधार पर सरल एवं संक्षिप्त संकलन का प्रयास किया गया है.
पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों से, विशेषतयः मत्स्य महापुराण के अध्ययन से, पता चलता है कि सृष्टि रचना से पूर्व सम्पूर्ण जगत गहन अंधकार से ढका हुआ था। पृथ्वी, आकाश, सूर्य-चन्द्रमा, जीव-जंतु, पेड़-पौधे, पहाड़-नदियाँ आदि कुछ भी नहीं था।उस समय पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर,जिनको स्वयंभू नारायण या भगवान नारायण कहा जाता है, का प्रादुर्भाव हुआ।
भगवान नारायण ने सृष्टि उत्पत्ति की इच्छा से सबसे पहले जल उत्पन्न किया. जल में अपनी शक्ति (वीर्य) का आधान किया. जल में पड़कर वीर्य सहस्त्रों सूर्य के समान देदीप्यमान एक विशाल सुवर्णमय अंडे के रूप में प्रकट हुआ. वह दीर्घकाल तक जल में स्थित था. उसी अंडे से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए. कुछेक ग्रंथों में ब्रह्माजी की उत्पत्ति भगवान श्रीविष्णु की नाभि -कमल से बताया गया है। सृष्टि वृद्धि के उद्देश्य से महातेजस्वी ब्रह्मा ने सात मानस पुत्र उत्त्पन्न किये जिनके नाम - मरीचि, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, वशिष्ठ और कौशिक थे। ब्रह्माजी की आँख से अत्रि अवतरित हुए। महर्षि अत्रि की पत्नी का नाम अनुसुइया था। ब्रह्मा के अंश स्वरुप अत्रि दम्पति के चंद्रमा नामक एक अमृतमय पुत्र उत्पन्न हुआ। यहाँ से चन्द्र वंश प्रारंभ हुआ। चंद्रमा के वंशज चन्द्रवंशी क्षत्रिय कहलाये। चंद्रमा से बुध नामक एक सुन्दर एवं बुद्धिमान बालक उत्पन्न हुआ। उसकी माता का नाम तारा था। बुध और उनकी पत्नी इला से पुरुरवा नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। पुरुरवा और उनकी पत्नी उर्वशी से आयु पैदा हुए। आयु और उनकी पत्नी प्रभा से नहुष पैदा हुए। नहुष और उनकी पत्नी विरजा से ययाति उत्पन्न हुए। ययाति और उनकी पत्नी देवयानी से यदु पैदा हुए। यदु से यादव-वंश चला। यादव-वंश में यदु की कई पीढ़ियों के बाद वसुदेव की पत्नी, देवकी के गर्भ से सोलह कला संपन्न, पूर्ण ब्रह्म, यदुकुल शिरोमणी, भगवान श्रीकृष्ण मानव रूप में अवतरित हुए।
श्रीकृष्ण स्वयं भगवान है। श्रीमद्भागवत महापुराण के प्रथम स्कन्ध के तृतीय अध्याय के श्लोक संख्या 27 और 28 में वर्णन आता है :
भगवान नारायण ने सृष्टि उत्पत्ति की इच्छा से सबसे पहले जल उत्पन्न किया. जल में अपनी शक्ति (वीर्य) का आधान किया. जल में पड़कर वीर्य सहस्त्रों सूर्य के समान देदीप्यमान एक विशाल सुवर्णमय अंडे के रूप में प्रकट हुआ. वह दीर्घकाल तक जल में स्थित था. उसी अंडे से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए. कुछेक ग्रंथों में ब्रह्माजी की उत्पत्ति भगवान श्रीविष्णु की नाभि -कमल से बताया गया है। सृष्टि वृद्धि के उद्देश्य से महातेजस्वी ब्रह्मा ने सात मानस पुत्र उत्त्पन्न किये जिनके नाम - मरीचि, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, वशिष्ठ और कौशिक थे। ब्रह्माजी की आँख से अत्रि अवतरित हुए। महर्षि अत्रि की पत्नी का नाम अनुसुइया था। ब्रह्मा के अंश स्वरुप अत्रि दम्पति के चंद्रमा नामक एक अमृतमय पुत्र उत्पन्न हुआ। यहाँ से चन्द्र वंश प्रारंभ हुआ। चंद्रमा के वंशज चन्द्रवंशी क्षत्रिय कहलाये। चंद्रमा से बुध नामक एक सुन्दर एवं बुद्धिमान बालक उत्पन्न हुआ। उसकी माता का नाम तारा था। बुध और उनकी पत्नी इला से पुरुरवा नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। पुरुरवा और उनकी पत्नी उर्वशी से आयु पैदा हुए। आयु और उनकी पत्नी प्रभा से नहुष पैदा हुए। नहुष और उनकी पत्नी विरजा से ययाति उत्पन्न हुए। ययाति और उनकी पत्नी देवयानी से यदु पैदा हुए। यदु से यादव-वंश चला। यादव-वंश में यदु की कई पीढ़ियों के बाद वसुदेव की पत्नी, देवकी के गर्भ से सोलह कला संपन्न, पूर्ण ब्रह्म, यदुकुल शिरोमणी, भगवान श्रीकृष्ण मानव रूप में अवतरित हुए।
श्रीकृष्ण स्वयं भगवान है। श्रीमद्भागवत महापुराण के प्रथम स्कन्ध के तृतीय अध्याय के श्लोक संख्या 27 और 28 में वर्णन आता है :
"ऋषयो मनवो देवा मनु पुत्रा महौजसः। कलाः सर्वे हरेरेव सप्रजापतयस्तथा ॥
एते चान्शकलःपुन्सः कृष्णस्तु भग्वान् स्वयं। इन्द्रारिव्यकाकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे॥"
(श्रीमद्भागवत महापुराण 1/3/27&28)
ऋषि, मनु, देवता,प्रजापति, मनु पुत्र, मीन, कूर्मआदि सब भगवान के अंश है, कोई कलावतार है, कोई अंशावतार है, परन्तु श्रीकृष्ण स्वयं भगवान हैं।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के रचयिता और कण कण में विद्यमान रहने वाले भगवान श्रीकृष्ण चराचर सम्पूर्ण जगत के स्वामी, रक्षक और पालनहार है। वे सर्वातीत, सर्वस्वरूप, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी,अनंत असीम और अनादि हैं। जाति, धर्म, देश, काल, कुल आदि सभी सीमाओं से परे हैं। किन्तु दूसरी तरफ यह भी सत्य है कि उन्होंने यदुकुल में अवतार लिया और यादवों के पूर्वज कहलाये। इससे यदुवंशियों का गर्वित होना स्वाभाविक है। भगवान श्रीहरि के यदुकुल में अवतार लेने से यह वंश परम पवित्र हो गया।श्रीमद भागवत महापुराण और श्रीविष्णु पुराण में वर्णन आता है :
यदोवनशं नरः श्रुत्त्वा सर्वपापैः परमुच्यते| यत्राव्तीर्णं कृष्णाख्यं परंब्रह्म निराकृति ।|
(श्रीविष्णु पुराण से)
वर्णयामि महापुण्यं सर्वपापहरं नृणां । यदोर्वन्शं नरः श्रुत्त्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते।i
यत्र-अवतीर्णो भग्वान् परमात्मा नराकृतिः। यदोसह्त्रोजित्क्रोष्टा नलो रिपुरिति श्रुताः।|
(श्रीमदभागवत महापुराण से)
" यदु वंश परम पवित्र वंश है. यह मनुष्य के समस्त पापों को नष्ट करने वाला है. इस वंश में स्वयम भगवान परब्रह्म ने मनुष्य के रूप में अवतार लिया था जिन्हें श्रीकृष्ण कहते है. जो मनुष्य यदुवंश का श्रवण करेगा वह समस्त पापों से मुक्त हो जाएगा."
यदोवनशं नरः श्रुत्त्वा सर्वपापैः परमुच्यते| यत्राव्तीर्णं कृष्णाख्यं परंब्रह्म निराकृति ।|
(श्रीविष्णु पुराण से)
वर्णयामि महापुण्यं सर्वपापहरं नृणां । यदोर्वन्शं नरः श्रुत्त्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते।i
यत्र-अवतीर्णो भग्वान् परमात्मा नराकृतिः। यदोसह्त्रोजित्क्रोष्टा नलो रिपुरिति श्रुताः।|
(श्रीमदभागवत महापुराण से)
" यदु वंश परम पवित्र वंश है. यह मनुष्य के समस्त पापों को नष्ट करने वाला है. इस वंश में स्वयम भगवान परब्रह्म ने मनुष्य के रूप में अवतार लिया था जिन्हें श्रीकृष्ण कहते है. जो मनुष्य यदुवंश का श्रवण करेगा वह समस्त पापों से मुक्त हो जाएगा."
ऊपर की पंक्तियों में वर्णित वृतान्त से विदित होता है कि ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में एक का नाम अत्रि था। तदन्तर उनके नाम से अत्रि गोत्र का प्रादुर्भाव हुआ। अत्रि मुनि के चंद्रमा नामक एक पुत्र हुआ। चंद्रमा के नाम से चद्रवंश चला और उनके वंशज चंद्रवंशी क्षत्रिय कहलाये। चन्द्रवंश में आगे चलकर महाराज यदु का जन्म हुआ जिनसे यादव वंश चला । महर्षि अत्रि के कुल में उत्पन्न होने से यदुवंशिवों का ऋषि -गोत्र 'अत्रि" माना जाता है और चन्द्रमा के वंशज होने के कारण है उन्हें चंद्रवंशी क्षत्रिय कहा जाता हैं।
यदुवशियों से सम्बंधित कुछ रोचक तथ्य :-
नाम : यादव ( महाराज यदु के वंशज )
वंश : चंद्रवंशी
कुल : यदुकुल
ऋषि गोत्र : अत्रि
इष्ट देव : श्रीकृष्ण
ध्वज : पीताम्बरी
रंग : केसरिया
निशान : सुदर्शन चक्र
वृक्ष : कदम्ब , पीपल
नारा : जय यादव जय माधव