पुरुरवा का जन्म महाराज बुध के द्वारा इला के गर्भ से हुआ। वे परम तेजस्वी,दानशील,यज्ञकरता, पराक्रम दिखानेवले, सत्यभाषी, और पवित्र विचार वाले पुरुष थे। उनका रूप अत्यंत सुंदर था। वे अपने समय मे तीनो लोको मे अनुपम यशस्वी थे | पुरुरवा की माता इला मनु की पुत्री थीं।उनको मनु से प्रतिष्ठान नामक नगर का राज्य मिला था। इला ने अपने पुत्र पुरुरवा को प्रतिष्ठान का राजा बनाया। तब से प्रतिष्ठान नगरी बहुत काल तक चंद्रवंशी राजाओ की राजधानी ऱ्ही। उर्वशी नामक अप्सरा पुरुरवा की पत्नी थी। उर्वशी कौन थी, इसका संक्षिप्त विवरण आगे की पंक्तियों में दिया गया है।
उर्वशी:-
उर्वशी स्वर्ग की अप्सरा थी। साहित्यिक ग्रंथों और पुराण आदि में वर्णन आता है कि उर्वशी की उत्पत्ति नारायण की जंघा से हुई और वह सौंदर्य की मूर्ति थी। पद्म पुराण के अनुसार इनका जन्म कामदेव के उरू से हुआ। श्रीमदभागवत के अनुसार वह स्वर्ग की सबसे सुंदर अप्सरा थी। कहा जाता है कि ब्रह्मा के शाप के कारण उर्वशी को मनुष्य-लोक मे आना पडा।यद्यपि शाप के कारण देवलोक छोड़कर उसको मनुष्य-लोक मे आना पडा और इससे उनका दुखी होना भी स्वाभाविक था, तथापि जब उनको ज्ञात कुआ कि पुरुष शिरोमणी पुरुरवा मूर्तिमान कामदेव के समान सुंदर है तव वह धैर्य धारण कर उनके पास चली आयी। उर्वशी के सौन्दर्य को देख कर राजा पुरुरवा भी हर्ष से खिल उठे। उर्वशी ने महाराज पुरुरवा को अपना पति चुना, परंतु इसके लिए उसने राजा के सामने तीन शर्तें रखीं, जो इस प्रकार हैं - "मै केवल घी खाउंगी, मैथुन के अलावा अन्य किसी समय आपको वस्त्रहीन न देख सकूंगी, मेरे सकाम होने पर ही आप सहवास करेंगे। मेरे द्वारा स्वर्गलोक से लाये हुये दो भेड है, मै उन्हें पुत्र के समान स्नेह करती हू। ये भेंड हमेशा मेरी पलंग के साथ बांधे रहेंगे और आपको इनकी रक्षा करनी पडेगी। जब तक आप इन शर्तो का पालन करते रहेंगे तब तक ही मै आपके पास रहूंगी।" स्वर्ग की उस अप्सरा के सौन्दर्य को देखकर से राजा इतना मुग्ध हो चूका था कि उसकी हर बात उसे माननी पडी।
इस प्रकार वह श्रेष्ठ अप्सरा महाराज पुरुरवा के यहां रहने लगी। उर्वशी को राजा मे आसक्त होकर रहते हुये उनसठ वर्ष बीत गये, तब गन्धर्वो को उसकी चिंता सताने लगी। उर्वशी को देवताओ मे फिर किस प्रकार लाया जाय-वे इसका उपाय सोचने लगे। तब विश्वावसु नामक एक गंधर्व ने कहा- " मै उर्वशी और राजा पुरुरवा के बीच हुये अनुबंध को भली-भाँति जानता हूँ । राजा की प्रतिज्ञा भंग होने पर उर्वशी उनको छोड देगी। राजा की प्रतिज्ञा तोडने का उपाय भी मै जनता हू।" सब गन्धर्वों की सहमति से इस काम को सिद्ध करने के लिये वह कुछ सहायको को साथ लेकर वह राजा के नगर प्रतिष्ठानपुर गया। गन्धर्वों ने वहां रात के अंधेरे मे उर्वशी की पलंग से बंधे एक भेड को चुरा लिया। उर्वशी को इसका पता चला तो उसने राजा से कहा-"राजन! मेरे बच्चे को चोर उठा ले गये।" रात का अंधेरा था और राजा निःवस्त्र लेटा था। वह यह सोचकर नही उठा कि उर्वशी उसे नंगा देख लेगी और उसकी प्रतिज्ञा भंग हो जयेगी। थोडी देर बाद गन्धर्वो ने उर्वशी का दूसरा भेड भी चुरा लिया। दूसरे भेड के चुराये जाने पर उसने राजा से कहा - "राजन! मेरे दोनो पुत्र चोरी हो गये और आप कायरो की भान्ति सोये पडे हैं. उनको बचाने का बिलकुल प्रयास नहीं किया। धिक्कार है आपके पौरुष को '" उर्वशी के इस प्रकार कटु वचन सुनकर राजा विस्तर से उठकर उन भेडो को छुडाने के लिये दौड पड़ा। गंधर्व तो यही चाहते थे। उनके लिये उचित अवसर था। उन्होने अपनी शक्ति से भारी बिजली चमका कर रोशनी कर दी जिससे वह विशाल भवन एक साथ प्रकाशित हो गया। तब उर्वशी ने राजा का नंगा शरीर देख लिया। राजा को नंगा देखते ही उर्वशी शाप मुक्त हो गई और अंतर्धान हो वहाँ से चली गई.
राजा भेडो को छुडा कर वापस आया और जब महल मे घुसा तो उसे वहाँ उर्वशी नही मिली। इससे राजा व्याकुल हो गया और उर्वशी की खोज मे वह पृथ्वी पर जगह-जगह भटकने लगा। बहुत समय बीत जाने के बाद, एक दिन उसने उर्वशी को हैमवती नामावली पुष्करिडी मे स्नान करते हुए देखा। उस समय वह सखियो के साथ क्रीडा मग्न थी और प्रसन्नता से झूम रही थी। उसको देखकर राजा विलाप करने लगा। जब उर्वशी ने राजा को इस प्रकार विलाप करते देखा तो वह जल से बहार आयी और उससे कहा-' प्रभो! मै आपके द्वारा गर्भवती हू। निश्चय ही मेरे गर्भ से आपको संतान की प्राप्ति होगी। आपने अपना वचन नहीं निभाया। इसलिए मैं शापमुक्त हो गई। मै अब आपके साथ नहीं रह सकती। लेकिन आपकी पत्नी होने के नाते साल में एक रात्रि मै आपके साथ रहूंगी। हे राजन! इस प्रकार प्रतिवर्ष मेरे गर्भ से आपके पुत्र उत्पन्न होगे।" राजा प्रसन्न हो गया और वहां से अपने महल वापस आगया। एक वर्ष बीतने पर उर्वशी उसके पास फिर आयी। महायशस्वी पुरुरवा उसके साथ एक रात्रि रहे। यह क्रम कई वर्षो तक अविरल चालता रहा। उर्वशी प्रतिवर्ष एक रात्रि के लिये राजा के पास आती रही।
कई वर्ष बीत जाने के बाद उर्वशी ने राजा से कहा-" हे राजन! गंधर्व आपको वर देना चाहते है। इसलिए आप मेरे साथ स्वर्गलोक चलो। आप उनसे 'गन्धर्वो की समानता' वाला वरदान मांग लीजिये। गन्धर्वों की समानता प्राप्त कर लेने के बाद आप मेरे साथ स्वर्ग लोक में रह सकोगे" राजा ने वेसा ही किया और गन्धर्वो के समक्ष जाकर उनकी 'समता' का वरदान माँगा। "एवमवस्तु" कहते हुये गन्धर्वो ने एक थाली मे अग्नि लाकर पुरुरवा को दिया और कहा कि इस अग्नि से यज्ञ करने के फलस्वरूप आप हमारे लोक मे आ जाओगे। राजा अग्नि लेकर अपने नगर के ओर चल पडा। मार्ग मे एक स्थान पर अग्नि को रख कर अपने पुत्रो को साथ लेकर वह घर आ गया। कुछ दिन बाद राजा फिर वन मे अग्नि लेने गया । परंतु वहाँ उसको अग्नि नही मिली।. अग्नि के स्थान पर पीपल के एक वृक्ष को खडा देखा। उसने यह बात गन्धर्वो को बताई तो गन्धर्वो ने कहा-' राजन! तुम पीपल की अरणी बनाकर अग्नि उत्पन्न करो." महाराज पुरुरवा ने वेसा ही किया। पीपल की अरणी से उत्पन्न अग्नि करके उससे यज्ञ किया और गन्धर्वो की समानता प्राप्त की। उसके बाद वह गंधर्व लोक पहुंच गया। कई ग्रंथो मे वर्णन आता है कि महाराज पुरुरवा ने अरणी के माध्यम से अग्नि प्रज्वलित करने की कला सीखी। यह कला उस समय तक किसी अन्य व्यक्ति को ज्ञात नहीं थी। महाराज पुरुरवा ने अपने देश भारत मे इस कला को प्रचलित किया।
पुरुरवा के छः पुत्र हुये. उनके नाम इस प्रकार है- (१) आयु, (२) धीमान, (३) अमावसु, (४) विश्वासु, (५) शतायु और (६) श्रुतायु. सभी ग्रंथ इनके पुत्रो की संख्या के बारे मे एक मत नही है। कई ग्रंथो मे यह संख्या सात बतायी गई तो कईयो मे नौ। पुरुरवा के एक पुत्र का नाम आयु था। वह जयेष्ट होने के साथ श्रेष्ठ भी था। पुरुरवा के बाद आयु को प्रतिष्ठान की गद्दी प्राप्त हुई। उसके वंशजों का राज्य बहुत काल तक प्रतिष्ठान मे चलता रहा।
पुरुरवा के छः पुत्र हुये. उनके नाम इस प्रकार है- (१) आयु, (२) धीमान, (३) अमावसु, (४) विश्वासु, (५) शतायु और (६) श्रुतायु. सभी ग्रंथ इनके पुत्रो की संख्या के बारे मे एक मत नही है। कई ग्रंथो मे यह संख्या सात बतायी गई तो कईयो मे नौ। पुरुरवा के एक पुत्र का नाम आयु था। वह जयेष्ट होने के साथ श्रेष्ठ भी था। पुरुरवा के बाद आयु को प्रतिष्ठान की गद्दी प्राप्त हुई। उसके वंशजों का राज्य बहुत काल तक प्रतिष्ठान मे चलता रहा।
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आयु के वंशज गौरवशाली हुये। आयु के नहुष नामका पुत्र हुआ। नहुष के ययाति नमक पुत्र हुआ । ययाति से यदु हुए। यदु से यादव वंश चला और यदु की कई पीढीयो के बाद, यादव वंश मे, माता देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने मानव रूप मे अवतार लिया।
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